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Computer Knowledge ( कंप्यूटर क्या है ! कंप्यूटर की विशेषताएं ),Basics of Computer - NIOS

                                                             कंप्यूटर क्या है ?

     अक्सर लोग सोचते है कि कंप्यूटर एक सर्वशक्तिमान सुपरमैन की तरह है, परन्तु ऐसा नहीं है।  यह एक स्वचालित इलेक्टॉनिक मशीन है जो तीव्र गति से कार्य करता है और कोई गलती नहीं करता है।  इसकी क्षमता सीमित है।  यह अंग्रेजी शब्द कम्पुट ( COMPUTE ) से बना है जिसका अर्थ गणना करना है।  हिंदी में इसे संगणक कहते है।  इसका उपयोग बहुत सारे सूचनाओं को प्रोसेस करने तथा इअकटठा करने के लिए होता है। 

     कंप्यूटर एक यन्त्र है जो डेटा ग्रहण करता है व् इसे सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम के अनुसार किसी परिणाम के लिए प्रोसेस करता है। 


  कंप्यूटर को कृत्रिम बुद्धि की संज्ञा दी गई है।  इसकी स्मरण शक्ति मनुष्य की तुलना में उच्च होती है।  


                                                कंप्यूटर संबंधी प्रारंभिक शब्द -

 1. डेटा (DATA ) : यह अव्यस्थित आंकड़ा या तथ्य है।  यह प्रोसेस के पहले की अव्यस्था है। साधारणतः डेटा को दो भागों में विभाजित करते है -

 (A.) संख्यात्मक डेटा ( Numeric Data ) : इस तरह के डेटा में 0  से 9 तक के अंको का प्रयोग होता है ; जैसे - कर्मचारियों का वेतन , परीक्षा में प्राप्त अंक , जनगणना , रोल न० , अंकगणितीय संख्याये आदि। 

(B. ) अल्फान्यूमेरिक   डेटा ( Alphanumeric Data ): इस तरह के डेटा में अंको के साथ , अक्षरों तथा चिन्हो का प्रयोग किया जाता है ; जैसे -पता (Address ) आदि। 

2.  सूचना (Information ): यह अव्यवस्थित डेटा का प्रोसेस करने के बाद प्राप्त परिणाम है जो व्यवस्थित होता है है। 


                                            कंप्यूटर की विशेषताएं 

1. यह तीव्र गति से कार्य करता है अर्थात समय की बचत होती है। 

2. यह त्रुटिरहित कार्य करता है। 

3. यह स्थायी तथा विशाल भण्डारण की सुविधा देता है 

4. यह पूर्व निर्धारित निर्देशों के अनुसार तीव्र निर्णय लेने में सक्षम है। 

        कंप्यूटर के उपयोग 

1. शिक्षा के क्षेत्र में 

2. वैज्ञानिक अनुसन्धान में 

3. रेलवे तथा आरक्षण में 

4. बैंक में                             

5. मेडिकल में 

6. डिफेन्स में 

7. प्रकाशन में 

8. व्यापार में 

9. संचार में 

10. प्रशासन में 

11. मनोरंजन में 


                                            कंप्यूटर के कार्य 

1. डाटा संकलन 

2.डाटा संचयन 

3. डेटा संसाधन 

4. डेटा निर्गमन 


                                डेटा प्रोसेसिंग और इलेक्ट्रॉनिक डेटा प्रोसेसिंग 

कंप्यूटर के निर्माण से पहले निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए डेटा का संकलन , संचयन और निर्गमन हस्तचालित विधि से होता था , जिसे डेटा प्रोसेसिंग कहते थे।  जैसे जैसे टेक्नोलॉजी का विकाश हुआ इस सभी कार्यो के लिए कंप्यूटर का उपयोग होने लगा।  इसे इलेक्टॉनिक डेटा प्रोसेसिंग कहते है। 

        डेटा प्रोसेसिंग  मुख्य लक्ष्य अव्यवस्थित डेटा से व्यवस्थित डेटा प्राप्त है।  जिसका उपयोग निर्णय लेने  है। 

 



                                                        कंप्यूटर सिस्टम 

यह उपकरणों का एक समूह है जो एक साथ मिलकर डेटा प्रोसेस करते है।  कंप्यूटर सिस्टम में अनेक इकाइयां होती है जिनका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक डेटा प्रोसेसिंग में होता है--

    1. इनपुट यूनिट (Input Unit  ): वैसी इकाई जो यूजर से डेटा प्राप्त कर सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट को इलेक्ट्रॉनिक पल्स के रूप में प्रवाहित करता है।  जैसा कि आटोमेटिक टेलर मशीन में जब हम निकासी के लिए जाते है तो हमें पिन नंबर डालना होता है।  उसके लिए इनपुट इकाई के रूप में कीपैड का उपयोग किया जाता है 


 2. सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (CPU ): इसे प्रोसेसर भी कहते है।  यह एक इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोचिप है जो डेटा मको इनफार्मेशन में बदलते हुए प्रोसेस करता है। इसे कंप्यूटर का ब्रेन कहा जाता है।  यह कंप्यूटर सिस्टम के सरे कार्यो को नियंत्रित करता है  तथा यह इनपुट को आउटपुट में रूपांतरित करता है।  यह इनपुट यूनिट तथा आउटपुट यूनिट से मिलकर पूरा कंप्यूटर सिस्टम बनाता है।  इसके अग्रलिखित  भाग होते है -



इनपुट यूनिट         सेंट्रल प्रोसेस यूनिट            आउटपुट 


(a. )  अर्थमेटिक लॉजिक यूनिट : इसका उपयोग अंकगणितीय तथा तार्किक गणना में होता है।  अंकगणितीय गणना के अंतर्गत जोड़ , घटाव , गुणा  और भाग इत्यादि तथा तार्किक गणना के अंतर्गत तुलनात्मक गणना  जैसे (<,> या = ), हां या ना ( Yes या No ) इत्यादि आते  है। 

(b ) कंट्रोल यूनिट : यह कंप्यूटर के सारे कार्यो को नियंत्रित करता है तथा कंप्यूटर के सरे भागों  जैसे : इनपुट , आउटपुट डिवाइसेस , प्रोसेसर इत्यादि के सारे गतिविधियों के बीच तालमेल बैठाता हैं। 

(c ) मेमोरी  यूनिट : यह डेटा तथा निर्देशों के संग्रह करने में प्रयुक्त होता है।  इसे मुख्यतः दो वर्गों प्राइमरी तथा सेकेंडरी मेमोरी में विभाजित करते है।  जब कंप्यूटर कार्यशील रहता है , अर्थात वर्तमान में उपयोग हो रहे डेटा तथा निर्देश का संग्रह प्राइमरी मेमोरी में होता है।  सेकेंडरी मेमोरी का उपयोग बाद में उपयोग होने वाले डेटा तथा निर्देशों को संग्रहित करने में होता है।   


3. आउटपुट यूनिट : वैसी इकाई जो सेंट्रल प्रोसेसींग यूनिट से डेटा लेकर उसे यूजर को समझने योग्य बनाता है।  जैसा कि , जब हम सुपर मार्किट में बिल अदा करते है तो हमें रसीद प्राप्त होता है , जो एक आउटपुट का रूप है।  यह आउटपुट उपकरण प्रिंटर से प्राप्त होता है। 



                                                        कंप्यूटर का विकास 


 कंप्यूटर एक ऐसी मानव निर्मित मशीन है जिसने हमारे काम करने , रहने ,खेलने इत्यादि सभी के तरीको में परिवर्तन कर दिया है।  इसने हमारे जीवन के हर पहलू को किसी न किसी तरह से छुआ है।  यह अविश्वशनीय अविष्कार ही कंप्यूटर है। पिछले लगभग चार दशकों से इसने हमारे समाज के रहन सहन , काम करने के तरीके को बदल डाला है।  यह लकड़ी के एबैकस से शुरू होकर नवीनतम उच्च गति माक्रोप्रोसेसर में परिवर्तित हो गया है। 


कंप्यूटर का इतिहास


1. एबैकस ( Abacus ): प्राचीन समय में ( गणना करने के लिए ) एबैकस कला उपयोग किया जाता था।  एबेकस एक यंत्र है जिसका उपयोग आंकिक गणना के लिए किया जाता है।  गणना तारो में पिरोये मोतियों के द्वारा किया जाता है।  इसका अविष्कार चीन में हुआ था। 


2. पास्कल कैलकुलेटर  या पास्कलाइन :  प्रथम गणन मशीन का निर्माण सन 1645 में फ्रांस के गणितज्ञ ब्लेज पास्कल ने किया था।  उस कैलकुलेटर में इंटर लौकिंग गियरस का उपयोग किया गया था , जो 0 से 9 संख्या को दर्शाता था। यह केवल जोड़ या घटाव करने सक्षम था।  अतः इसे ऐंडिंग मशीन भी कहा जाता था। 


3. एनालिटिकल इंजन : सन 1801 में जोसेफ मेरी जैक्वार्ड ने स्वचालित बुनाई मशीन का निर्माण किया।  इसमें धातु के प्लेट को छेदकर पंच किया जाता था और जो कपड़ो की बुनाई को नियंत्रित करने में सक्षम था. 

    सन 1820 में एक अंग्रेज आविष्कारक चार्ल्स बैबेज ने डिफरेंस इंजन तथा बाद में एनालिटिकल इंजन बनाया।  चार्ल्स बैबेज के कांसेप्ट का उपयोग कर पहला कंप्यूटर प्रोटोटाइप का निर्माण किया गया।  इस कारण चार्ल्स बैबेज को 'कंप्यूटर का जन्मदाता ' ( Father ऑफ़ Computer ) कहा जाता है।  दस साल बाद के मेनहत के बावजूद वे पूर्णतः सफल नहीं हुए।  सन 1842 में लेडी लवलेश ( Lady Lavelace ) ने एक पेपर L. F. Menabrea on the Analytical Engine का इटालियन से अंग्रेजी में रूपांतरण किया।  अँगस्टा ने ही पहला Demonstration Program लिखा और उनके बाइनरी अर्थमेटिक के योगदान को जॉन वॉन न्यूमैन ने आधुनिक कंप्यूटर के विकास के लिए उपयोग किया। इसलिए अँगस्टा को 'प्रथम प्रोग्रामर' तथा 'बाइनरी प्रणाली का अविष्कारक' कहा जाता है। 

 

4. हरमैन हौलारथ और पंच कार्ड : सन 1880 के लगभग होलार्थ ने पंच कार्ड का निर्माण किया , जो आज के कंप्यूटर कार्ड के तरह होता था।  उन्होंने होलार्थ 80 कॉलम कोड और सेंसस टेबुलटिंग मशीन का भी अविष्कार किया। 



5. प्रथम एल्क्ट्रॉनिक कम्प्यूटर (ENIAC ) : सन 1942 में हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के एच आइकन ने एक कंप्यूटर का निर्माण किया।  यह कंप्यूटर Mark I आज के कंप्यूटर का प्रोटोटाइप था। सन 1946 में द्धितीय विश्वयुद्ध के दौरान ENIAC ( Electronic Numeric Integrated and Calculator ) का निर्माण हुआ।  जो प्रथम पूर्णतः इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर था। 


6 स्टोर्ड प्रोग्राम कांसेप्ट (EDSAC ) :स्टोर्ड प्रोग्राम कांसेप्ट के अनुसार प्रचालन निर्देश और आंकड़ा जिनका प्रोसेसिंग में उपयोग हो रहा है उसे कंप्यूटर में स्टोर्ड होना चाहिए और आवश्यकतानुसार प्रोग्राम के क्रियान्वयन (execution ) के समय रूपांतरित होना चाहिए।  एडजैक कंप्यूटर कैंब्रिज विश्वविद्यालय में विकसित किया गया था , जिसमे स्टोर्ड प्रोग्राम कंसेप्ट समाहित था।  यह कंप्यूटर में निर्देश के अनुक्रम को स्टोर्ड करने में सक्षम था और पहला कंप्यूटर प्रोग्राम के समतुल्य था।  


7. यूनिवेक -1 (UNIVAC -I ):इसे universal Automatic Computer भी कहते है।  सन 1951 में व्यापारिक उपयोग के लिए उपलब्ध यह प्रथम कंप्यूटर था।  इसमें कंप्यूटर की प्रथम पीढ़ी के गुण समाहित थे। 


                                                                    प्रथम पीढ़ी 

कंप्यूटर की विभिन्न पीढ़ियों को विकसित करने का उद्देश्य सस्ता ,छोटा ,तेज तथा विश्वासी कंप्यूटर बनाना रहा है। 


प्रथम पीढ़ी के कंप्यूटर -1942 -1955 

युनिवेक 1 पहला व्यावसायिक कंप्यूटर था।  इस मशीन का विकास फ़ौज और वैज्ञानिक उपयोग के लिए किया गया था।  इसमें निर्वात ट्यूब का प्रयोग किया गया था।  ये आकार में बड़े और अधिक ऊष्मा उत्पन्न करने वाले थे।  इसमें सारे निर्देश तथा सूचनाएं 0 तथा 1 के रूप में कंप्यूटर में संग्रहित होते थे तथा इसमें मशीनी भाषा का प्रयोग किया गया था।  संग्रहण के लिए पंच कार्ड का उपयोग किया गया था।  उदहारण -एनिएक (ENIAC ), यूनिवक (UNIVAC ) तथा मार्क -1 इसके उदहारण है।  निर्वात ट्यूब के उपयोग में कुछ कमिया भी थी।  निर्वात ट्यूब गर्म होने में  समय लगता था तथा गर्म होने के बाद अत्यधिक ऊष्मा पैदा होती थी , जिसे ठंडा रखने के लिए खर्चीली वातानुकूलित यन्त्र का उपयोग करना पड़ता था , तथा अधिक मात्रा में विद्युत खर्च होती थी। 


दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर  1955 -1964 

      इस पीढ़ी के कंप्यूटर में निर्वात ट्यूब की जगह हलके छोटे  ट्रांजिस्टर  का प्रयोग किया गया।  कंप्यूटर में आंकड़ों को निरूपित करने के लिए मैग्नेटिक कोर का उपयोग किया गया।  आंकड़ों को संगृहीत करने के लिए मैग्नेटिक डिस्क तथा टेप का उपयोग किया गया।  मैग्नेटिक डिस्क पर आयरन ऑक्सऐड की परत होती थी।  इनकी गति और संग्रहण  क्षमता भी तीव्र थी।  इस दौरान व्यवसाय तथा उद्योग जगत में कम्प्यूटर का प्रयोग प्रारम्भ हुआ तथा नए प्रोग्रामिंग भाषा का विकास किया गया। 


तीसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर  1965 -1974 


        इलेक्ट्रॉनिक में निरन्तर तकनिकी विकास से कंप्यूटर के आकर में कमी , तथा तीव्र गति से कार्य करने की क्षमता का विकास हुआ।  तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटर ट्रांजिस्टर के जगह इंटीग्रेटेड सर्किट (IC -Integrated Circut ) का प्रयोग शुरू हुआ जिसका विकास जे. एस. किल्वी (J. S. Kilbi ) ने किया।  आरम्भ में LSI (Large Scale Integration ) का प्रयोग किया गया , जिसमे एक सिलकॉन चिप पर बड़ी मात्रा में I. C. या ट्रांजिस्टर  प्रयोग किया गया।  RAM ( Random Access Memory ) के प्रयोग होने से मैग्नेटिक टेप तथा डिस्क के सग्रहण क्षमता में वृद्धि हुई।  लोगो द्वारा प्रयुक्त कंप्यूटर में टाइम शेयरिंग का विकास हुआ , जिसके द्वारा एक से अधिक यूजर एक साथ कंप्यूटर के संसाधन का उपयोग कर सकते थे।  हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर अलग अलग मिलना प्रारम्भ हुआ ताकि यूजर अपने आवश्यकतानुसार सॉफ्टवेयर ले सके। 


चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर 1975 -up till now 

चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर में LSI IC के जगह VLSI तथा ULSI ( Ultra Large Scale Integration ) का प्रयोग आरम्भ हुआ जिसमे एक चिप में लगभग लाखों चींजो को सग्रहित किया जा सकता था। VLSI तकनीक के उपयोग से मइक्रोप्रोसेसर का निर्माण हुआ जिससे कम्प्यूटर के आकर में कमी और क्षमता में वृद्धि हुई। मइक्रोप्रोसेसर का उपयोग न केवल कंप्यूटर में बल्कि और भी बहुत सारे उत्पादों में किया गया ; जैसे -वाहनों ,सिलाई मशीन ,मईक्रोवेव ओवन ,इलेक्ट्रॉनिक गेम इत्यादि में।  मैग्नेटिक डिस्क तथा टेप के स्थान पर सेमी कंडक्टर मेमोरी का उपयोग होने लगा।  इस दौरान GUI (Graphical User Interface ) के विकास से कंप्यूटर का उपयोग करना और सरल हो गया।  MS-DOS ,MS-Windows  तथा Apple Mac OS ऑपरेटिंग सिस्टम तथा 'C ' भाषा का विकास हुआ।  उच्चस्तरीय भाषा का मानकीकरण ( standardization ) किया गया ताकि प्रोग्राम सभी कम्प्यूटरो में चलाया जा सके। 


पाँचवी पीढ़ी के कंप्यूटर - At present 

पाँचवी पीढ़ी के कंप्यूटर में VLSI के स्थान पर ULSI ( Ultra Large Scale Inegration ) का विकास हुआ और एक चिप द्वारा करोडो गणना करना संभव हो सका।  संग्रहण ( Storage ) के लिए सीडी ( Compact  Disk ) का विकास हुआ।  इंटरनेट , ई-मेल तथा वर्ल्ड वाइड  वेब (WWW  ) का विकास हुआ।  बहुत छोटे तथा तीव्र गति से कार्य करने वाले कंप्यूटर का विकास का विकास हुआ।  प्रोग्रामिंग की जटिलता काम ही गई।  कृत्रिम ज्ञान क्षमता ( Artificial Intellegence ) को विकसित करने की कोशिश की गई  ताकि परिथिति अनुसार निर्णय ले सके।  पोर्टेबल पीसी और डेस्कटॉप पीसी ने कंप्यूटर  क्षेत्र में क्रांति  ला दिया तथा इसका उपयोग जीवन के हर क्षेत्र में होने लगा।  


 पीढ़ी                                     विशेषताएं 

प्रथम पीढ़ी         1. इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में निर्वात ट्यूब का उपयोग 

                          2. प्राइमरी इंटरनल स्टोरेज के  रूप में मैग्नेटिक ड्रम का उपयोग 

                          3. सिमित मुख्य भण्डारण क्षमता 

                          4. मंद गति के इनपुट -आउटपुट 

                           5 .निम्न स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा ,मशीनी भाषा ,असैंबली भाषा। 

                           6. ताप नियंत्रण में असुविधा। 

                           7. उपयोग  -पेरौल प्रोसेसिंग और रिकॉर्ड रखने के लिए 

                            8. उदहारण -IBM 650  UNIVAC 

द्धितीय पीढ़ी         1.  ट्रांजिस्टर का उपयोग आरम्भ। 

                            2. प्राइमरी इंटरनल स्टोरेज के रूप में चुंबकीय कोर का उपयोग। 

                            3. मुख्य भण्डारण क्षमता में वृद्धि। 

                            4. उच्च स्तरीय भाषा ( कोबोल , फोरट्रान )

                            5. तीव्र इनपुट -आउटपुट। 

                            6. आकर और ताप में कमी। 

                            7. तीव्र और विश्वसनीय। 

                            8. बेंच ओरिएंटेड उपयोग -बिलिंग ,पेरोल प्रोसेसिंग , इन्वेंटरी फाइल का UPDATION . 

तृतीय पीढ़ी         1. इंटीग्रेटेड चिप का उपयोग। 

                          2. चुंबकीय कोर और सॉलिड स्टेट मुख्य भण्डारण के रूप में उपयोग (SSI और MSI )

                          3.अधिक लचीला इनपुट -आउटपुट 

                          4.तीव्र ,छोटे , विश्वसनीय। 

                          5. उच्चस्तरीय भाषा का वृहत उपयोग। 

                          6. रिमोट प्रोसेसिंग और टाइम   शेयरिंग सिस्टम , मल्टी प्रोग्रामिंग। 

                          7. इनपुट आउटपुट को नियंत्रित करने के लिए सॉफ्टवेर उपलब्ध। 

                          8. उपयोग -एयरलाइन रिजर्वेशन सिस्टम , क्रेडिट कार्ड बिलिंग , मार्किट फोरकास्टिंग। 

                          9. उदहारण - IBM System /360 ,NCR 395 ,Burrough B6500 

चतुर्थ पीढ़ी         1. VLSI का तथा ULSI उपयोग। 

                         2.उच्च तथा तीव्र क्षमता वाले भंडारण। 

                         3. भिन्न -भिन्न हार्डवेयर निर्माता के यन्त्र बीच एक अनुकूलता ताकि उपभोक्ता किसी एक                                     विक्रेता से बधा रहे। 

                         4.मिनी कंप्यूटर के उपयोग में वृद्धि। 

                         5.मइक्रोप्रोसेसर और मिनी कंप्यूटर का आरम्भ। 

                         6. उपयोग -   इलेक्ट्रॉनिक फण्ड ट्रांसफर ,व्यावसायिक उत्पादन और व्यक्तिगत उपयोग। 

                          7. उदाहरण - IBM  PC-XT , एप्पल II . 

   पांचवी पीढ़ी      1. ऑप्टिकल डिस्क का भंडारण में उपयोग। 

                           2.  इंटरनेट , ई -मेल तथा WWW का विकास। 

                            3. आकर में बहुत छोटे , तीव्र तथा उपयोग में आसान प्लग और प्ले। 

                            4. उपयोग -इंटरनेट , मल्टीमीडिया का उपयोग करने में। 

                             5. उदाहरण -IBM नोटबुक , प्लेटिनम PC , सुपर कंप्यूटर इत्यादि। 


स्पेशल परपस और जनरल परपस  कंप्यूटर 

1. स्पेशल परपस कंप्यूटर : स्पेशल परपस कंप्यूटर का उपयोग किसी एक निश्चित और विशेष तरह के कठिनाई को दूर करने के लिए किया जाता है। किसी विशेष उपयोग के लिए ऐसे सिस्टम अत्यधिक प्रभावी होते है। उदाहरण - स्वचालित ट्राफिक कंट्रोल सिस्टम , स्वचालित एयरक्राफ्ट लैंडिंग सिस्टम इत्यादि। 

2. जनरल परपस कम्प्यूटर : ये किसी विशेष कार्य के लिए निर्मित नहीं होते है। ये एक से अधिक कठिनाइयों को दूर करने में सक्षम होते है तथा इनमे थोड़ा बहुत प्रोग्राम या निर्देश में परिवर्तन कर भिन्न भिन्न कार्य संपादित किये जा सकते है।  इनका उपयोग साधारण एकाउंटिंग से लेकर जटिल अनुरूपण तथा पूर्वानुमान में होता है। 

  कार्य पध्दति के आधार पर वर्गीकरण 

1. डिजिटल कम्प्यूटर :डिजिटल कंप्यूटर में आंकड़ों को इलेक्ट्रिक पल्स के रूप में निरूपित किया जाता है।  जिसकी गणना ( 0 या 1 ) से निरूपित  की जातीहै।  इसका एक अच्छा उदाहरण है डिजिटल घडी।  इनकी गति तीव्र होती है तथा यह करोडो गणनाये प्रति सेकंड क्र सकता है।  आधुनिक डिजिटल कंप्यूटर में द्विआधारी  पध्दति ( binary System ) का प्रयोग किया जाता है। 

2. एनालॉग कंप्यूटर : इसमें विध्युत के एनालॉग रूप का प्रयोग किया जाता  है। इसकी गति धीमी होती है।  वोल्ट्मीटर  और बैरोमीटर इत्यादि एनालॉग यंत्र के उदाहरण है। 

3. हाइब्रिड कंप्यूटर :यह डिजिटल और एनालॉग का मिश्रित रूप है।  इसमें इनपुट तथा आउटपुट एनालॉग रूप में   होता है परन्तु प्रोसेसिंग डिजिटल रूप में होता है।  इनमे एनालॉग से डिजिटल कनवर्टर (ADC ) तथा डिजिटल से एनालॉग कनवर्टर (DAC ) का उपयोग होता है। 

              आकार के आधार पर वर्गीकरण 

1. मेनफ़्रेम कम्प्यूटर : इन मशीनों की विशेषताएं वृहत आतंरिक स्मृति संग्रहण तथा सॉफ्टवेयर और पेरिफेरल यंत्रो को वृहत रूप से जोड़ा जाना है।  इसके कार्य करने की क्षमता तथा गति अत्यंत तीव्र होती है।  इन सिस्टम पर एक साथ एक से अधिक लोग विभिन्न कार्य कर सकते है।  इसके लिए मल्टीवर्क्स आपरेटिंग सिस्टम का निर्माण बेल प्रयोगशाला में किया गया।  उपयोग - बैंकिंग , अनुशंधान ,रक्षा ,अंतरिक्ष आदि के क्षेत्र में।  उदाहरण - IBM -370 , IBM -S/390 तथा युनिवेक -1110 इत्यादि। 

2. मिनी कम्प्यूटर :- ये आकर में मेनफ़्रेम से काफी छोटे होते है। इसकी संग्रहण क्षमता और गति अधिक होती है।  इसपर एक साथ कई लोग काम कर सकते है। 80386 सुपर चिप का प्रयोग इसमें करने पर वह सुपर मिनी कंप्यूटर में बदल जाता है। 

उपयोग -कम्पनी , यात्रा आरक्षण , अनुशंधान आदि में। 

उदाहरण -AS 400 , BULL HN -DPX2 ,HP 9000  और RISC 6000 . 

3. माइक्रो कंप्यूटर :- माइक्रो कम्प्यूटर में प्रोसेसर के रूप में माइक्रो प्रोसेसर का उपयोग होता है।  इनमे इनपुट के लिए कीबोर्ड तथा आउटपुट देखने के लिए मॉनिटर का उपयोग होता है।  इसकी क्षमता 1 लाख संक्रियाएँ प्रति सेकण्ड होती है। 

उपयोग - व्यवसायिक तौर पर , घरो में , मनोरंजन , चिकित्सा आदि के क्षेत्र में। 

उदाहरण - APPLE MAC ,IMAC , IBM , PS/2 , IBM कम्पेटेवल।  

4. पर्सनल कम्प्यूटर :-यह आकार में बहुत छोटे होते है।  यह माइक्रो कंप्यूटर का ही रूप है।  इस पर एक समय एक ही प्रयोक्ता कार्य कर सकता है।  इसका आपरेटिंग सिस्टम एक साथ कई कार्य कर सकता है।  इसे इंटरनेट से भी जोड़ सकते है।  भारत में निर्मित प्रथम कंप्यूटर का नाम सिध्दार्थ है। पैकमैन नामक प्रसिध्द कंप्यूटर खेल के लिए निर्मित हुआ था। 

    उपयोग - घरों में , व्यावसायिक रूप में , मनोरंजन , आंकड़ों के संग्रहण में इत्यादि। 

    उदाहरण - IBM ,Compaq ,Lenovo ,HP आदि के पर्सनल कंप्यूटर। 

5. लैपटॉप :-यह पीसी की तरह ही कार्य करता है , परन्तु आकार में PC से भी छोटा तथा कहीं भी के जाने योग्य होता है।  CPU , Moniter , Keyboard ,Mouse तथा अन्य ड्राइव भी इसमें संयुक्त होते है।  यह बैटरी से भी कार्य करता  है अतः कहीं भी इसको ले जाकर इसका उपयोग किया जा सकता है।  वाई-फाई  और ब्लू -टूथ  की सहायता से इंटरनेट का भी उपयोग किया जा सकता है। 

    उदाहरण - IBM , Compaq , Apple , Lenovo  आदि कंपनियों के लैपटॉप। 

6. पामटॉप :- यह आकार में बहुत ही छोटा कंप्यूटर है जिसे हथेली पर रखकर उपयोग किया जाता है।  इसमें इनपुट ध्वनि के रूप में भी किया जाता है। इसे PDA भी कहा जाता है। 



7. सुपर कंप्यूटर :- यह अबतक का सबसे शक्तिशाली कंप्यूटर है।  विश्व का प्रथम सुपर कंप्यूटर 1976 ई में क्रे -1     (Cray -1 ) था जो क्रे रिसर्च कंपनी द्वारा विकसीत था।  यह इतिहास में सबसे सफल सुपर कंप्यूटर है।  भारत का प्रथम सुपर कंप्यूटर परम सी -डैक द्वारा 1991 में विकसित किया गया था। वर्तमान प्रोसेसिंग क्षमता विशेषतः गणना की गति में सुपर कंप्यूटर सबसे आगे है।  इसमें मल्टी प्रोसेसिंग तथा समान्तर प्रोसेसिंग प्रयुक्त होता है , जिसके द्वारा किसी भी कार्य   को टुकड़ो में विभाजित किया जाता है तथा कई व्यक्ति एक साथ कार्य कर सकते है।  इसका उपयोग एनिमेटेड ग्राफिक्स , परमाणु  अनुशंधान इत्यादि में होता है। 

        पेस सीरीज के सुपर कंप्यूटर DRDO ( Defence Research and Development Organisation ) हैदराबाद तथा अनुपम सीरीज के कंप्यूटर  BARC ( Bhabha Atomic Research Cetre  ) के द्वारा विक्सित किया गया था।  उदाहरण - CRAY -1  




                                                         इनपुट आउटपुट डिवाइस 



एक कंप्यूटर में इनपुट तथा आउटपुट दोनों उपकरण होते है।  जिन यंत्रो के द्वारा डेटा इनपुट किया जाता है  अर्थात जिन यंत्रो से आकड़ो , शब्द या निर्देश मेमोरी में डाले जाते है।, इनपुट डिवाइसेस कहलाते है।  दूसरे शब्दों में ये ऐसे यंत्र जिनके द्वारा हम कंप्यूटर को निर्देश देते है और कंप्यूटर  उन पर प्रोग्राम के अनुरूप कार्य करता है।  जैसे की की -बोर्ड , माउस आदि।  

कुछ प्रमुख इनपुट डिवाइसेस निम्नलिखित है :

1. की-बोर्ड  ( Key-board )

2. माउस ( Mouse ) 

3. ट्रैकबॉल ( Trackball )

4. जॉयस्टिक ( Joystick )

5. स्कैनर (Scanner )

6. मइक्रोफ़ोन (Microphone )

7. वेब कॉम (Web  Cam )

8. बार कोड रीडर ( Bar Code  Reader )

9. ओ सी आर ( OCR )

10. ऍम आई सी आर ( MICR )

11. ओ एम आर (OMR )

12. किमबाल  टैग रीडर ( Kimball Tag Reader )

13. . स्पीच रेकग्निशन सिस्टम  (Speech Recognition System )

14. लाइट पेन ( Light Pen )

15. टच स्क्रीन ( Touch Screen )


1. की -बोर्ड :- की -बोर्ड किसी भी कंप्यूटर की प्रमुख इनपुट डिवाइस है।  . जिनके प्रयोग से कंप्यूटर में टेक्स्ट तथा न्यूमेरिक डेटा निवेश कर सकते है।  की -बोर्ड  में सारे अक्षर टाइपराइटर की तरह ही क्रम में होते है  लेकिन इसमें टाइपराइटर से ज्यादा बटन होते है।  इसमें कुछ फंक्शन बटन होते है  जिनको बार -बार किये जाने वाले कार्यो के लिए पूर्व निर्धारित किया जा सकता  हैं।  जैसे - F-1 बटन को सहायता ( Help ) के लिए प्रयोग किया जाता है।  की -बोर्ड को कंप्यूटर से जोड़ने के लिए एक विशेष जगह (Port )बानी होती है ,लेकिन आजकल USB की -बोर्ड आते   है जो कंप्यूटर के USB पोर्ट में लग जाते है।  तथा वायरलेस की -बोर्ड भी आते है जिन्हे सिस्टम से जोड़ने की जरुरत नहीं होती है।  की -बोर्ड में पांच प्रकार के की (Key ) होते है।  

        

(a ) अल्फाबेट की (Alphabet Keys ):- की -बोर्ड में 26 अल्फाबेट की (Keys ) A  से Z तक होते है , जिनक उपयोग कर हम शब्द या टेक्स्ट ( Text ) को लिख सकते है। 

(b ) संख्यात्मक की (Numeric Keys ) :- इन की ( Keys ) का उपयोग नंबर या अंक टाइप करने के लिए होता है।  इनपर 0 से 9 के दाहिने  तक के संख्या अंकित रहते  है. साधारणतः की -बोर्ड के दाहिने तरफ अंक टाइप करने के संखयात्मक की -पैड होता है।  इसमें 0 से 9 तक अंक , दशमलव , जोड़ ,घटाव , गुणा  तथा भाग के की (Keys ) होते है। 

(c ) फंक्शन की ( Function  Keys ):- ये की -बोर्ड में सबसे ऊपर स्थित होते है।  इन बटनों पर F1 से F12  अंकित होते है।  इनका उपयोग (Use ) बार -बार किये जाने वाले कार्य के लिए पहले से निर्धारित रहता है।  इनके उपयोग से समय की बचत होती है। 

(d) कर्सर कण्ट्रोल की (Cursor Control Keys ):-इन की (Keys ) का उपयोग स्क्रीन पर कर्सर को कही भी ले जाने के लिए होता है।  ये चार भिन्न दिशाओ को इंगित करते है जिसे चार तीर से दर्शाया रहता है।  इसे ऐरो की ( Arrow Keys ) भी कहा जाता है।  इसे दायाँ (Left ), बायाँ (Right ), ऊपर (Up ),तथा नीचे (Down ) ऐरो -की कहते है। 

   इनके  ठीक ऊपर कर्सर को नियंत्रित करने के लिए चार और बटन होते है ; जिन्हे होम  एंड पेज अप डाउन कहते है।  

     होम (Home ): कर्सर को लाइन के आरम्भ में के जाता है। 

     एन्ड (End ): कर्सर को लाइन के अंत में ले जाता है। 

     पेज अप (Page Up ): कर्सर को एक पेज पीछे या पिछले पेज ले जाता है। 

     पेज डाउन (Page Down ): कर्सर को अगले पेज पर ले जाता है। 

(e ) स्पेशल परपस की ( Special Pupose Keys )

कैप्स लॉक की (Caps Lock Keys ): यह एक टॉगल बटन है।  टॉगल बटन अर्थात एक बार दबाने पर वह सक्रीय तथा दूसरी बार पुनः उसे दबाने पर निष्क्रिय हो जाता है।  इसे सक्रीय रखने (On ) पर सारे अक्षर बड़े अक्षरो ( Capital Letter ) में लिखा जाता था।  जिसे कंप्यूटर में Upper case कहते है।  इसे पुनः दबा कर निष्क्रिय किया जाता है , जिससे छोटे अक्षरों (Small Letter  या Lower  case ) में लिखना आरम्भ हो जाता है। 


नम लॉक की (Num Lock Key ):- यह भी टॉगल बटन है।  इसके सक्रिय रहने से की -बोर्ड के ऊपर की संख्यात्मक की -बोर्ड सक्रीय (On ) रहता है , नहीं तो नंबर पैड डिरेक्शनल ऐरो के रूप में कार्य करता है। 

शिफ्ट की (Shift Key ):- यह एक संयोजन बटन (Combination Key ) है।  इसे किसी और बटन के साथ उपयोग करते है।  की -बोर्ड पर जिस किसी भी बटन पर दो character अंकित रहता है तो ऊपर वाले Character को टाइप करने के लिए 'शिफ्ट की ' का उपयोग करते है।  जैसे कि की -बोर्ड पर 2 के ऊपर भागो में @ कैरेक्टर है।  अतः @ टाइप करने की लिए शिफ्ट के साथ @ बटन दबाते है , तो @ टाइप होते है नहीं तो 2 टाइप होगा।  अगर कैप्स लॉक के सक्रीय है तो भी शिफ्ट के साथ कोई भी अक्षर टाइप करने पर छोटे अक्षर ( Small Letter या Lowercase   ) में टाइप होगा।  नंबर पैड को डिरेक्नल ऐरो के रूप कार्य कराने के लिए भी हम इसका उपयोग करते है।  की -बोर्ड  में शिफ्ट की दो स्थानों पर होता है। 

इंटर की ( Enter Key ) या रिटर्न की (Return  Key ):-कंप्यूटर को दिए गए कमाण्ड नाम या प्रोग्राम नाम को निष्पादित करने या शुरू करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता  है। डॉक्यूमेंट में एक पंक्ति का अंत तथा नए पंक्ति का आरम्भ करता है। यह भी की -बोर्ड पर दो स्थानों पर होता है। 

टैब की (Tab Key ): यह टेबुलेटर बटन का संक्षिप्त नाम है।  यह कर्सर को निश्चित दुरी तक एक बार में ले जाता है और ब्रावज़र पेज में दूसरे लिंक पर ले जाता है। वर्ड (Word ) या एक्सेल (Excel ) के टेबल के एक वर्ग से दूसरे वर्ग में जाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। इसके द्वारा डायलॉग बॉक्स में दिए गए विकल्पों में से किसी एक का चयन भी किया जा सकता है। वर्ड डॉक्यूमेंट (Word -Document ) में टैब (Tab ) सेट कर पेज का मार्जिन , पैराग्राफ तथा एक शब्द से दूसरे शब्द के बिच की दुरी  को  सेट किया जाता है। 


एस्केप की (Escape Key ):- यह कैंसिल बटन के समतुल्य है।  पॉवर पॉइंट (Power -Point ) में इसके उपयोग से स्लाइड शो रुक जाता है तथा वेब पेज पर चलता हुआ एनीमेशन रुक जाता है।  वेब पेज जो लोड हो रहा है इसके प्रयोग से रुक जाता है तथा Ctrl के साथ उपयोग करने पर Start मेनू खुल जाता है।  अर्थात जो भी कार्य जो कंप्यूटर में चल रहा है या प्रोग्राम खुला है उसे बंद कर देता है या उससे बहार आ जाता है। 


स्पेस की (Space Key ):- शब्दों के बीच में जगह डालने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। 

बैक स्पेस की (Back Space Key ):-कर्सर के ठीक बायीं ओर के अक्षर , चिन्ह या जगह की मिटाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। 

डिलीट की (Delete Key ):-कर्सर के दायी ओर के अक्षर , चिन्ह या जगह को मिटाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।  इसके द्वारा चयन किया हुआ (Selected ) शब्द , लाइन , पेज , फाइल या डाइंग को मिटाया जा सकता है। 

कंट्रोल की (Ctrl -Control Key ):-यह भी एक संयोजन बटन है जो किसी और बटन के साथ मिलकर विशेष कार्य करता है। इसका कार्य विभिन्न सॉफ्टवेयर के अनुसार बदलता रहता है।  जैसे कि - Ctrl+C  कॉपी करने तथा Ctrl + V पेस्ट करता है।  की -बोर्ड पर दो 'कंट्रोल की ' होते  है। कंट्रोल +ऑल्ट +डेल  तीनो बताने के एक साथ दबाने पर विंडो टास्क मैनजेर विंडो खुलता हिअ तथा इसमें हम किसी भी प्रोग्राम को बंद कर सकते है।  अगर कोई प्रोग्राम कंप्यूटर में चलते -चलते हैंग ( Hang ) कर जाता है  तीनों के उपयोग से उस प्रोग्राम को बंद किया जा सकता  है। रिसेट (Reset ) भी कहते है। 

प्रिंट स्क्रीन की (Print  Screen Key ):-इसे की (Key ) को Shift-Key  के साथ प्रयोग कर स्क्रीन पर प्रदर्शित फाइल या फोटो प्रिंटर के द्वारा प्रिंट किया जाता है। 

स्क्रॉल लॉक की (Scroll Lock Key ):- यह बटन की -बोर्ड के ऊपर पॉज की  साथ स्थित होता है।  यह टेक्स्ट या रन कर रहे प्रोग्राम को अस्थाई रूप से एक स्थान पर रोकता है।  फिर से टेक्स्ट या प्रोग्राम को सक्रीय करने के लिए इसी बटन को दुबारा उपयोग करना होता है। 

पॉज की (Pause Key ):-  यह 'की' की -बोर्ड के ऊपर दाहिने तरफ स्थित होता है।  यह बटन को अस्थाई तौर पर चल रहे प्रोग्राम को रोक देता है तथा किसी बटन को दबाने पर  प्रोग्राम चलने लगता है।  जैसे -कंप्यूटर गेम में अस्थायी रूप से गेम को रोकने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। 

मॉडिफायर की (Modifier Key ):- यह कंप्यूटर की -बोर्ड पर विशेष 'की' है जो किसी 'की ' के कॉम्बिनेशन में उपयोग किया जाता है।  यह दूसरे 'की' के कार्य को रूपांतरित कर देता है।  जैसे -Alt +F4  MS -विंडोस में सक्रीय प्रोग्राम विंडो को बंद कर देता है।, जहां Alt मॉडिफायर 'की'  F4  के कार्य को रूपांतरित कर देता है। 

  कुछ मॉडिफायर की (Key ) नीचे है -

1. शिफ्ट की   2. कण्ट्रोल की   3.  ऑल्ट की 



2. माउस (Mouse ):-  माउस एक इनपुट डिवाइस है।  डगलस सी इन्जेलवर्ट ने 1977 में इसका अविष्कार किया था।  इसमें लेफ्ट बटन , राइट बटन और बीच में एक स्क्रॉल  व्हील होता है।  माउस के उपयोग  करें में हमें की -बोर्ड  के किसी बटन को याद  रखने  की आवश्यकता नहीं होती है , बस माउस के पॉइंटर (Pointer ) को स्क्रीन पर किसी नियत स्थान पर क्लिक करना होता है।  इसे पॉइंटिंग डिवाइस भी कहते है।  माउस दो बटन , तीन बटन और ऑप्टिकल भी होते है।  माउस के नीचे एक रबर बॉल होता है , जो  माउस को सतह पर हिलाने  का में मदद करता है।  बॉल के घुमाने से स्क्रीन पर माउस पॉइंटर के दिशा में परिवर्तन होता है।  माउस  नीचे रखे प्लेट के आकार की वस्तु  को माउस पैड कहते है। 

इसके मुखयतः चार कार्य होते  है-

डबल क्लिक (Double Click ):-लेफ्ट माउस बटन को जल्दी -जल्दी दो बार दबा कर छोड़ने को डबल क्लिक कहते है।  इसका उपयोग किसी फाइल , डॉक्यूमेंट या प्रोग्राम को खोलने (Open ) के लिए होता है। 

क्लिक या लेफ्ट क्लिक (Click or left Click ):-लेफ्ट   माउस बटन को एक बार दबाकर छोड़ने पर एक आवाज (Clicking Sound ) देता है तथा स्क्रीन पर किसी एक Object का चयन (Select ) करता है।  जैसे माई कंप्यूटर (My Computer Icon ) पर लेफ्ट बटन क्लिक करने से इसका रंग नीला हो जाता है  मतलब इसका चयन हो गया है। इस बटन का उपयोग सामान्यतः OK  के लिए किया जाता है। 

राइट क्लिक (Right Click ) :- राइट माउस बटन को एक बार दबा कर छोड़ने पर यह स्क्रीन पर आदेशों (Commands ) की एक सूची (List ) देता है।  यह ऑब्जेक्ट की प्रॉपर्टीज को एक्सेस करने में उपयुक्त होता है।  

ड्रैग और ड्राप (Drag AND Drop ):-  इसका उपयोग किसी चीज (Item ) को स्क्रीन पर एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए होता है। स्क्रीन के किसी एक आइटम के ऊपर पॉइंटर को ले जाकर लेफ्ट माउस बटन को दबाये हुआ स्क्रीन पर किसी दूसरी जगह के जाकर छोड़ देते  है। जिसके फलस्वरूप वह आइटम दूसरी जगह स्थानन्तरित हो जाता है।  इस क्रिया को ड्रैग और ड्राप कहते है। 


3. ट्रैकबॉल (Trackball ):- यह माउस का ही एक विकल्प है।  इसके ऊपर एक बल होता है जिसे घुमाकर पॉइंटर की दिशा में परिवर्तन किया जाता है।  मुखयतः इसका उपयोग चिकित्सा के क्षेत्र में ,  कैड (CAD  ) तथा कैम (CAM ) में किया जाता है। 


4. जॉयस्टिक (Joystick ):- यह एक इनपुट डिवाइस है।  जिसका उपयोग विडिओ तथा कंप्यूटर गेम खेलने में होता है।  इसकी भी कार्य प्रणाली ट्रैक बॉल की तरह होती है , केवल बॉल की जगह इसमें एक छड़ी (Stick ) लगी होती है। 

5. स्कैनर (Scanner ):- इसका उपयोग टेक्स्ट या चित्र को डिजिटल रूप में परिवर्तित करने में होता है जिसे हम लोग स्क्रीन पर देख सकते है। इन चित्रों का उपयोग भिन्न भिन्न क्षेत्रो में किया जा सकता है।   इन स्कैन चित्रों को मेमोरी या सीडी में सुरक्षित रखा या कोई प्रोसेस या एडिटिंग किया जा सकता है। यह भी इनपुट डिवाइस है। यह फोटो कॉपियर मशीन की तरह दिखता है।  काउंटर पर बैठे सेल्स क्लर्क किसी वस्तु का टैग स्कैनर कर सोर्स डाटा ऑटोमेशन का प्रयोग करता है। 

6. मैक्रोफोन (Microphone ):- इस िनौत डिवाइस का प्रयोग किसी भी आवाज को रिकार्ड करने में होता है। 


7. वेबकेम (  Webcam ):- इसका प्रयोग इंटरनेट पर फोटो देखने तथा फोटो लेने के लिए होता है।  इसका उपयोग इंटरनेट की सहायता से दूर बैठे आदमी का फोटो देख सकते है , परन्तु दूसरे व्यक्ति के पास भी वेबकेम उपलब्ध होना चाहिए।  यह डिजिटल कैमरे की तरह होता है  जिसे कंप्यूटर से जोड़कर इनपुट डिवाइस के रूप में उपयोग होता है। 

8. बार कोड रीडर ( Bar Code  Reader ):- यह Point of  Sales  डेटा रिकॉर्डिंग है।  आजकल सुपर मार्किट में मूल्यों तथा डेटा अपडेट करने के लिए इसका उपयोग होता है। सुपर मार्किट में सामान के ऊपर जो सफ़ेद और काली लाइन बनी होती है , वह बार कोड  है।  जिसे बार कोड रीडर जो एक स्कैनिंग डिवाइस है के द्वारा स्कैन कर डिजिटल रूप में कंप्यूटर में भेजा जाता है।  आजकल बार कोड रीडर का उपयोग सुपर मार्किट , पुस्तकालय ,बैंक तथा पोस्ट ऑफिस में भी किया जाता है। 

9. ऍम आई सी आर (MICR - Magnetic Ink Character Reader ):- खास चुंबकीय स्याही से लिखे अक्षरों या डॉक्यूमेंट को इसके द्वारा पढ़ा जाता है , या कंप्यूटर में संग्रहण किया  है। बैंको में इस तकनिकी का व्यापक उपयोग होता  है।  चुम्ब्कीय स्याही और विशेष फॉन्ट का संयोजन से प्रति घंटे हजारो चेक स्कैन किया जा सकता  है।  जिससे समय की बचत तथा तीव्र गति से कार्य सम्पादित किया जा सकता है। 

10. ओ सी आर (OCR -Optical Character Recognition ):- यह टाइप या हाथ से लिखे हुए डेटा को भी पढ़ सकता है।  यह स्कैनर तथा विशेष सॉफ्टवेयर का संयोजन है जो प्रिन्टेड डेटा या हस्तलिखित डेटा को ASCII में रूपांतरित  कर देता है। इसका उपयोग कागजी रिकॉर्ड को electric filing तथा स्कैन चालान को स्प्रेडशीट में परिवर्तीत करने में होता है। 

11. ओ ऍम आर (OMR -Optical Mark Reader ):- यह एक  डिवाइस है जिसका प्रयोग फार्म या कार्ड  पर विशिष्ट स्थानों पर डाले गये चिन्हो को पढ़ने में होता है। इसमें उच्च तीव्रता वाले प्रकाशीय किरणों को डालकर चिन्हो पढ़ा जाता है।  इसका उपयोग लॉटरी टिकट , ऑफिसियल फार्म तथा वस्तुनिष्ठ उत्तर पुस्तिकाओं को जांचने में होता है। 

12. किमबाल टैग रीडर (Kimball Tag Reader ):- किमबाल टैग एक छोटा सा कार्ड है जिसमे छेड़ पंच रहते है।  जैसे किसी दुकान में कपडे में कार्ड लगा रहता है जिसे खरीदने के बाद निकाल दिया  जाता है और कंप्यूटर केंद्र में प्रोसेसिंग के लिए भेज दिया जाता है। 

13 स्पीच रिकग्निशन सिस्टम (Speech Recognition System ):- स्पीच रिकग्निशन मइक्रोफ़ोन या टेलीफोन द्वारा बोले गए शब्दों के सेट को पकड़कर ध्वनि में परिवर्तित करने की क्रिया है।  रिकग्निशन शब्दों को कमांड और नियंत्रण , डाटा प्रविष्ट और दस्तावेज तैयार करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।  स्पीच रिकग्निशन सिस्टम , बोले हुए शब्दों को मशीन के पढ़ने लायक इनपुट में बदल देता है।  इसका उपयोग Voice डायलॉग , सरल डाटा प्रविस्ट स्पीच से टेक्स्ट प्रोसेसिंग तथा हवाई जहाज कॉकपिट में होता है। 


14. प्रकाशीय कलम (Light Pen ):- यह एक इनपुट डिवाइस है।  इसका उपयोग (Direct ) स्क्रीन पर कुछ लिखने , चित्र बनाने में होता है। 



15. टच स्क्रीन (Touch Screen ):- यह एक इनपुट डिवाइस है।  जब हम स्क्रीन को स्पर्श करते है तो यह पता लगा लेता है कि हमने इसे कहाँ स्पर्श किया है।  इसका उपयोग बैंको में एटीएम तथा सार्वजानिक सूचना केन्द्रो में स्क्रीन पर उपलब्ध विकल्पों का चयन करने के लिए किया जाता है।  इसका उपयोग संगीत सुनने के लिए होता है। 


आउटपुट डिवाइस (Output Devices )

ये ऐसे उपकरण है जो प्रोसेस के उपरांत रिजल्ट देते या प्रदर्शित करते है। इसके द्वारा कंप्यूटर प्रोसेड जानकारी को देखते या ग्रहण करते है -

कुछ आउटपुट डिवाइस है -

1. मॉनीटर  (Moniter )                                       2. प्रिन्टर (Printer )

3. स्पीकर (Speaker )                                          4. प्लॉटर (Plotter )

5. स्क्रीन इमेज प्रोजेक्टर ( Screen Image Projector )


1. मॉनिटर ( Moniter  ):- यह आउटपुट डिवाइस है जो चित्र या प्रोसेस इनपुट के रिजल्ट को स्क्रीन पर प्रदर्शित करता है।  यह कंप्यूटर तथा यूजर के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है।  मॉनिटर की गुणवत्ता की पहचान डॉट पिच , रेसोलुशन और रिफ्रेश रेट से किया जाता है। कंप्यूटर की समस्त सूचनाएं देखने के लिए इस डिवाइस का प्रयोग किया जाता है।  इसे VDU (Visual Display Unit ) भी कहते है। इसके डिस्प्ले आकार को डायगोनली मापा जाता है।  मॉनिटर का रेसोलुशन जितना अधिक हो पिक्सेल उतने ही अधिक होंगे। 

मुख्यतः दो प्रकार के मॉनिटर आजकल प्रचलन में है - 

(a ) सी आर टी मॉनिटर (CRT -Cathode Ray Tube ):-यह मॉनिटर  भी उसी सिद्धांत पर कार्य करता है, जिनपर टीवी करता है।  इसमें कैथोड रे ट्यूब रहता है जिसमे इलेक्ट्रान गन लगा होता है।  जिसके द्वारा प्राप्त इलेक्ट्रान बीम को परिवर्तित कर चित्र बनाया जाता है अर्थात स्क्रीन पर डिस्प्ले प्राप्त होता है।  सी आर टी स्क्रीन थोड़ी मुड़ी होती है।  मॉनिटर पर चित्र छोटे छोटे बिन्दुओ से मिलाकर बना होता है जीने पिक्सेल कहते है। 

(b) टी ऍफ़ टी  (TFT ):-यह एक सीधा स्क्रीन होता है जो हल्का तथा पतला होता है तथा काम जगह घेरता है।  यह सी आर टी मॉनिटर से अपेक्षाकृत महंगा होता है। 

2. प्रिंटर (Printer ):- प्रिंटर एक मुख्य आउटपुट डिवाइस है जिसके द्वारा प्रिंटेड कॉपी या हार्ड कॉपी कागज पर प्राप्त होता है।  इसका उपयोग स्थायी दस्तावेज (Permanent Document ) तैयार करने  के लिए  होता है। 


प्रिंटर के प्रकार --

कंप्यूटर प्रिंटर मुख्यतः तीन पसमूहों में बाटा जाता  है ----

(a) कैरक्टर प्रिंटर (Character Printer ):- यह एक बार में एक करैक्टर प्रिंट करता  है। इसे सीरियल प्रिंटर भी कहते है।  करैक्टर प्रिंटर 200 -450  करैक्टर /सेकंड प्रिंट करता है। 

(b) लाइन प्रिंटर (Line Printer ):- यह  एक लाइन प्रिंट करता है।  यह तीव्र गति से प्रिंट का कार्य करता है।  लाइन प्रिंटर 200 -2000  प्रति /मिनट प्रिंट करता  है। 

(c) पेज प्रिंटर (Page Printer ):- यह एक बार में पूरा पेज प्रिंट करता है। यह विशाल डेटा का प्रिंट लेने में सक्षम होता है। 

      प्रिंट करने के तरीके (Manner ) के अनुसार प्रिंटर दो प्रकार के होते है --

  (a) इम्पैक्ट प्रिंटर (Impact Printer ):-यह कागज , रिबन तथा करैक्टर तीनो पर एक साथ चोट कर डेटा प्रिंट करता है।  इम्पैक्ट प्रिंटर भी कई प्रकार के होते है। 

    (i) डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर (Dot Matrix Printer ):- यह एक करैक्टर प्रिंटर है।  जिसमे एक साथ प्रिंट हेड होता है जो आगे -पीछे तथा ऊपर -नीचे घूमता है।  यह स्याही लहे रिबन पर चोट कर प्रिंट करता  है।  यह 80 कॉलम तथा 132 कॉलम दो तरह की क्षमताओं में आता है।  इसमें प्रिंटिंग खर्चा बाकि प्रिंटरों की अपेक्षा कम आता है लेकिन प्रिंट की गुणवत्ता और स्पीड दूसरे प्रिंटर के मुकाबले कम होती है।  इसमें एक बार में केवल एक ही रंग का प्रिंट लिया जा सकता है इसलिए इसे मोनो प्रिंटर भी कहते है।  इसके क्षमता को डी पी आई (Dot Per Inch ) में मापा जाता है। 

  (ii ) डेज़ी व्हील प्रिंटर (Daisy wheel Printer ):-यह भी कंप्यूटर प्रिंटर है जिसमे प्रिंट हेड की जगह डेज़ी व्हील लगा होता है जो प्लास्टिक या धातु का बना होता है।  व्हील के बाहरी छोर पर अक्षर बना होता है।  एक अक्षर को प्रिंट करने के लिए डिस्क को घुमाना पड़ता है , जब तक पेपर तथा अक्षर सामने न आ जाये।  तब हैमर व्हील पर चोट करता है तथा अक्षर रिबन को चोटकर कागज पर एक अक्षर प्रिंट करता है।  इससे ग्राफ या चित्र प्रिंट नहीं किया जा सकता है।  यह शोर करने वाला तथा धीमी छपाई करता है। 

(b ) नन इम्पैक्ट प्रिंटर (Non Impact Printer ):- यह ध्वनि मुक्त प्रिंटर है क्योकि इसमें प्रिंटिंग हेड कागज पर चोट नहीं करता है।  नन इम्पैक्ट प्रिंटर कई प्रकार के होते है --

(i ) इंकजेट प्रिंटर (Inkjet Printer ):-यह नन इम्पैक्ट करैक्टर प्रिंटर है। यह इंकजेट तकनीक पर कार्य करता है।  यह दो प्रकार के होते है -मोनो और रंगीन।  इसमें स्याही के लिए कार्टरिज (cartridge ) लगाया जाता है।  स्याही को जेट की सहायता से छिड़कर करैक्टर तथा चित्र प्राप्त होता है।  इसकी गुणवत्ता तथा स्पीड दोनों काम होती है , तथा प्रिंटिंग खर्चा भी ज्यादा आता है। 

   (ii ) लेज़र प्रिंटर (Laser Printer ):- यह तीव्र गति का पेज प्रिंटर है।  इसमें लेज़र बीम की सहायता से ड्रम पर आकृति बनाता है।  लेज़र (बीम ) ड्रम पर डालने से फलस्वरूप विद्द्युत चार्ज हो जाता है।  तब ड्रम को टोनर में लुढ़काया जाता है ,जिससे टोनर ड्रम के चार्ज भागों पर लग जाता है।  इसे ताप या दबाव के संयोजन से कागज पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है जिससे प्रिंट प्राप्त होता है।  यह थर्मल तकनीक पर काम करता है।  यह दो प्रकार होते है -मोनो और रंगीन।  इसकी गुणवत्ता और स्पीड दोनों बाकि प्रिंटरों की तुलना में काफी बेहतर होती है। 


 (iii ) थर्मल प्रिंटर (Thermal Printer ):- इसमें थर्मोक्रोमिक (Thermochromic ) कागज का उपयोग किया जाता है।  जब कागज थरमल प्रिंट हेड से गुजरता है तो कागज के ऊपर स्थित लेप (coating ) उस जगह काला हो जाता है जहाँ यह गर्म होता है तथा प्रिंट प्राप्त होता है।  यह डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर की तुलना में तीव्र तथा ध्वनिरहित होता है।  इसमें प्रिंट की गुणवत्ता अच्छी होती है। 


3. स्पीकर (Speaker ):- यह भी एक आउटपुट डिवाइस है जी अक्सर मनोरंजन के लिए उपयोग में आता है।  यह ध्वनि के रूप में आउटपुट देता है। इसके लिए सी पी यू (CPU ) में साउंड कार्ड का होना आवश्यक है।  इसका उपयोग प्रायः संगीत या किसी तरह की ध्वनि सुनने में होता है। 

4. प्लॉटर (Plotter ):-यह एक आउटपुट डिवाइस है , जिसका उपयोग ग्राफ प्राप्त करने के लिए होता है। मुख्यतः इसका उपयोग इंजिनीयर ,चिकित्सक , वास्तुविद , सिटी प्लॉनर आदि करते है। यह ग्राफ तथा रेखाचित्र जैसे आउटपुट प्रदान करता है। 

5. स्क्रीन इमेज प्रोजेक्टर (Screen Image Projector ):- यह एक हार्डवेयर डिवाइस है जो बड़े सतह या पर्दे पर चित्रों को दिखाता है।  सामान्यतः इसको प्रस्तुतियों और बैठकों (Presentation and Meetings ) में किया जाता है , जो एक बड़ी छवि के रूप में दिखाया जाता है जिसे बड़े हॉल में बैठे हर कोई देख सके। 


                                                     मेमोरी (Memory )

मेमोरी कंप्यूटर का बुनियादी घातक है।  यह कंप्यूटर का आतंरिक भण्डारण (Internal storage ) क्षेत्र है।  केंद्रीय प्रोसेसिंग इकाई (CPU) को प्रोसेस करने के लिए इनपुट डेटा एवं निर्देश चाहिए , जो कि मेमोरी में संगृहीत रहता है।  मेमोरी में ही संगृहीत डेटा तथा निर्देश प्रोसेस होता है , तथा आउटपुट प्राप्त होता है।  अतः मेमोरी कंप्यूटर का एक आवश्यक अंग है। 

डेटा प्रतिनिधित्व 

     मेमोरी बहुत सारे सेल बटे होते है जिन्हे लोकेशन (Location ) कहते है।  हर लोकेशन का एक अलग लेबल होता है जिसे एड्रेस (Address ) कहते है सेल का उपयोग डेटा और निर्देश के संग्रह  किया  है।  सारे डेटा और निर्देश कंप्यूटर में बाइनरी कोड के रूप में रहते है जिसे 0 तथा 1 से निरूपित किया जाता है।  1 सर्किट के ऑन (on ) स्थिति को दर्शाता है तथा 0 सर्किट के ऑफ (off ) स्थिति को दर्शाता है।  लोकेशन में डेटा संग्रह करने को लिखना (Write ) तथा लोकेशन से डेटा प्राप्त करने को पढ़ना कहते है।  प्रत्येक लोकेशन में निश्चित बिट स्टोर सकती है जिसे वर्ड लेंथ (word length ) कहते है।  वर्ड लेगंध 81632 या 64 बिट की हो सकती है।  बिट बाइनरी डिजिट का सबसे छोटी इकाई है।  बाइट डेटा की एक इकाई है जो कि EBCDIC (External Binary Coded Decimal Intercharge Code ) में आठ बिट्स तथा ASCII (American Standard Code For Information Intercharge ) में सात बिट्स के समूह है। 

मेमोरी के प्रकार (Types ऑफ़ Memory ) 

1 प्राइमरी मेमोरी (Primary Memory )                    

i - रोम (ROM  )                                                  

ii -प्राम (PROM )

iii - ई -प्रॉम (E -PROM )

ix - ई -ई प्रॉम (EEPROM )    


2. सेकेंडरी मेमोरी (Secondary Memory )

i - हार्डडिस्क (Hard disk )   ii - मैग्नेटिक टेप (Magnetic Tape )    iii- सीडी रॉम (CD -ROM )

ix -फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk )     x - पेन ड्राइव (Pen Drive )        xi - डीवीडी  (DVD ) 

xii - फ़्लैश मेमोरी (Flash  Memory )


    मेमोरी अक्सर सेमीकंडक्टर स्टोरेज जैसे RAM और कभी कभी दूसरे तीव्र तथा अस्थाई रूप में जाना जाता है।  मेमोरी शब्द चिप (Chip ) के रूप में प्रयोग होने वाले डेटा स्टोरेज को इंगित करता है , परन्तु स्टोरेज सामान्यतः उपयोग होने वाले स्टोरेज डिवाइस जैसे ऑप्टिकल डिस्क तथा हार्ड डिस्क इत्यादि मेमोरी और स्टोरेज मूल्य , विश्वशनीयता तथा घटको पर एक दूसरे से भिन्न हैं। 

प्राइमरी मेमोरी या सेमीकंडक्टर या मुख्य मेमोरी या आतंरिक मेमोरी 

    प्राथमिक मेमोरी को अक्सर मुख्य मेमोरी भी कहते है , जो कंप्यूटर के अंदर रहता है।  तथा इसके डेटा और निर्देश का CPU के द्वारा तीव्र तथा प्रत्यक्ष उपयोग होता है। 

    1. रॉम (ROM ):- रॉम या रीड ओनली मेमोरी (Read Only Memory ) एक ऐसी मेमोरी है जिसमे संगृहीत डेटा यया निर्देश को केवल पढ़ा जा सकता है , उसे नष्ट या परिवर्तिति नहीं किया जा सकता है।  यह एक स्थायी मेमोरी (Non-volatile ) होती है जिसका प्रयोग कंप्यूटर में डेटा को स्थायी रूप से रखने में किया जाता है। 

    रॉम मदरबोर्ड के ऊपर स्थित एक सिलिकॉन चिप है जिसके निर्माण के समय ही निर्देशों को इसमें संगृहीत कर  है।  कंप्यूटर को स्विच ऑन (Switch On ) करने पर रॉम में सग्रहित निर्देश/प्रोग्राम स्वतः क्रियान्वित हो।   कंप्यूटर को स्विच ऑफ करने के बाद भी रॉम में संगृहीत निर्देश/प्रोग्राम नष्ट नहीं होता है।  रॉम में उपस्थित यह स्थाई प्रोग्राम बायोस (BIOS - Basic Input Output System ) के नाम से जाना जाता है। 

2. प्रॉम (PROM -Progammable Read Only Memory ) :-यह भी स्थाई मेमोरी है।  यूजर द्वारा एक बार निर्देश को बर्न करने के बाद उसमे परिवर्तन नहीं  है।  फिर वह साधारण रॉम की तरह व्यवहार। 

 3 ई -प्रॉम (E-PROM -Erasable Programmable Read Only Memory ) :- यह भी प्रॉम की तरह स्थायी मेमोरी है।  परन्तु बर्निंग की प्रक्रिया पराबैगनी किरणों की सहायता से दुहराई जा सकती है।  इसे पराबैगनी ई-प्रॉम (Ultravoilet E -PROM )भी कहते है। 

4.  ई-ई-प्रॉम (E-E-PROM - Electrically Erasable Read  Only Memory ):- यह भी ई-प्रॉम की तरह स्थायी मेमोरी है , परन्तु बर्निंग प्रक्रिया विद्युत पल्स की सहायता से फिर से की जा सकती है। 

5. कैश मेमोरी (Cache Memory ) :- यह केंद्रीय प्रोसेसिंग इकाई (CPU ) तथा मुख्य मेमोरी के बिच का भाग है जिसका बार -बार उपयोग में आने वाले डेटा और निर्देशों को संग्रहित करने में  किया जाता है।  जिस कारण  मुख्य मेमोरी तथा प्रोसेसर के बीच गति अवरोध दूर हो जाता है , क्योकि मेमोरी से डेटा पढ़ने की गति CPU के प्रोसेस करने की गति से काफी मन्द होती है। 

6. रैम (RAM - Random Access Memory  ):-  कंप्यूटर  सबसे ज्यादा उपयोग होने वाला यह मेमोरी है।  यह अस्थायी (volatile ) मेमोरी है , अर्थात अगर विद्युत सप्लाई बंद हो जाती है तो इसमें संग्रहित डेटा भी ख़त्म हो  जाती है।  जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है , रैंडम एक्सेस मेमोरी मतलब कि कही से भी डेटा को पढ़ा जा सकता है उसके लिए क्रमबध्द पढ़ना आवश्यक नहीं है।  इससे डेटा को पढ़ना तथा लिखना तीव्र गति से होता है।  रैम एक स्पीड है , जहाँ डेटा लोड होता है और काम करता है।  रैम 64MB ,128 MB ,512MB , 1GB आदि क्षमता में उपलब्ध है।  रैम मुखयतः दो प्रकार के होते है। 

    (a ) डायनामिक रैम (Dynamic RAM ) :- इसके डेटा को बार-बार रिफ्रेश करना होता है। 

    (b) स्टैटिक मेमोरी (Static RAM ):-इसके डेटा को रिफ्रेश करने की आवश्यकता नहीं होती है। 


    द्धितीयक मेमोरी (Secondary Memory )

    इसे सहायक (Auxilary ) तथा बैंकिंग स्टोरेज (Banking Storage ) मेमोरी भी कहते है।  चुकी मुख्य मेमोरी अस्थायी (volatile ) तथा सीमित क्षमता वाले होते है इसलिए द्धितीयक मेमोरी को बड़ी मात्रा में स्थायी (non-volatile ) डेटा मेमोरी के रूप में इस्तेमाल करते है।  ज़्यदातर इसका उपयोग डेटा बैकअप के लिए किया जाता है।  केंद्रीय प्रोसेसिंग इकाई को वर्तमान में जिस डेटा की आवश्यकता नहीं  है उसे द्धितीयक मेमोरी में साग्रहीत किया जाता है तथा जरुरत पड़ने पर इसे मुख्य मेमोरी में कॉपी कर उपयोग किया जाता है।  आजकल उपयोग होने वाले मैग्नेटिक टेप तथा मैग्नेटिक डिस्क इसके मुख्य उदहारण है। 

    1. हार्डडिस्क (Hard-Disk ):- हार्डडिस्क CPU के अंतर्गत डेटा स्टोर करने की प्रमुख डिवाइस होती है।  यह दूसरे डिस्क की की तुलना में उच्च संग्रहण क्षमता , विश्वशनीय  तथा तीव्र गति प्रदान करता है। चुकी ये डिस्क एक बॉक्स  रीड तथा राइट हेड के साथ सील रहता है तो यह  वातावरण तथा खरोच से भी सुरक्षित रहता है। रीड तथा राइट हेड डिस्क के किसी भी ट्रैक के किसी भी सेक्टर पर सीधे पढ़ तथा लिख सकते है  जिससे डेटा को पढ़ना या लिखना तेज गति से होता है। कंप्यूटर में अक्सर इसे 'सी ' (c) ड्राइव नाम दिया जाता है। कंप्यूटर के अंतर्गत इसी हार्ड डिस्क में सभी प्रोग्राम या डेटा इनस्टॉल रहता है जिसका उपयोग हम अपनी जरुरत के अनुसार करते है।  हार्ड डिस्क 10 GB ,20 GB , 40 GB ,80 GB आदि क्षमता में उपलब्ध है।  डिस्क को ट्रैकों तथा सेक्टर में विभाजित किया जाता है जिसे फॉर्मेटिंग कहते है। 


2. सीडी रॉम ( CD-ROM ):- सीडी रॉम को ऑप्टिकल डिस्क भी कहा जाता है।  ऑप्टिकल डिस्क के ऊपर डेटा को स्थायी रूप से अंकित किया जाता है।  लेज़र की सहायता से सीडी की सतह पर अतिसूक्ष्म गड्ढे बनाये जाते है।  सीडी में अंकित डेटा मिट नहीं सकती है।  रिकॉर्डिंग डेटा को पढ़ने के लिए काम तीव्रता वाले लेज़र बीम  उपयोग  जाता है।  इनमे ट्रैक स्पाइरल होता है जिससे डेटा को हार्ड डिस्क की अपेक्षा तीव्र गति से पढ़ा नहीं जा सकता है।  साधारणतः सीडी रॉम की संग्रह 640 MB होती है।  सीडी से डेटा प्राप्त करने के लिए सीडी ड्राइव तथा सीडी में डेटा डालने के लिए सीडी राइटर (CD -Righter )  आवश्यकता होती है।  इसे WORM (Write Once Read Many ) डिस्क भी कहते है अर्थात वैसा सीडी जिस पर केवल एक बार लिखा जा सकता है पर बार-बार पढ़ा जा सकता है।  अंकित डेटा में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। 


    3 सीडी -आर/डब्लू (CD-Read/Write ) :- सीडी-आर /डब्लू भी ऑप्टिकल डिस्क भी कहते है परन्तु इसमें संगृहीत डेटा को मिटाया या परिवर्तित किया है।  लेज़र द्वारा सीडी में डेटा संग्रह सीडी के सतह पर सूक्ष्म गड्ढे में परावर्तन में परिवर्तन  कर किया जाता है , तथा लिखे हुए सीडी में परिवर्तन करने के लिए फिर से लेज़र का उपयोग किया जाता है।  इस प्रकार के सीडी का उपयोग करने के लिए सीडी-आर/डब्लू ड्राइव की आवश्यकता होती है।  

   4.  मैग्नेटिक टेप  (Magnetic Tape ):- यह सबसे सफल बैंकिंग स्टोरेज माध्यम है।  वास्तव में हमलोग गांव के संग्रह तथा रिकॉर्डिंग  जो कैसेट उपयोग करते है , उसी सिद्धांत पर कार्य करता है। 

    मैग्नेटिक टेप 2400 से ३६०० फिट लम्बा तथा पोलिस्टर का बना होता है।  इसे रील में लपेटा जाता है।  पंच कार्ड तथा पेपर टेप तुलना  इसमें विशाल डेटा संग्रह किया जा सकता है।  टेप  में  को कितनी बार भी लिखा , मिटाया जा सकता है।  तथा इसके लिए मैग्नेटिक टेप ड्राइव की आवश्यकता होती है। सभी  मैग्नेटिक  टेप ड्राइव में दो रील होते है।  एक रील के टेप जो पढ़ने या लिखने में उपयोग होता है फाइल रील कहलाता है  तथा दूसरा टेकअप रील (Take up reel ) कहलाता है। 

5. फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk ) :- ये मुख्यतः तीन आकारों 8 इंच  5.25 इंच और 3.5 इंच  आता है।  धूल या खरोंच से बचाने के लिए डिस्क प्लास्टिक के कवर में बंद रहता है। डेटा को पढ़ने या लिखने के लिए कवर के ऊपर बने छेद का उपयोग किया जाता है।  ज्यादातर डिस्क ड्राइव में रीड -राइट हेड डिस्क के सतह से भौतिक संपर्क में होते है।  जो पढ़ने तथा लिखने के बाद हैट जाते है जिसके फलस्वरूप टेप को कोई नुकसान नहीं होता है।  इसमें डेटा वृत्ताकार ट्रैक पर लिखा जाता है।  यह एक वाह्य (External ) मेमोरी है। 

फ्लॉपी डिस्क का डायरेक्ट माध्यम के रूप में ज्यादा उपयोग होता है। 


6. डीवीडी (DVD-Digital Versatile Disc  ) :- डी वी डी Digital Versatile Disc  या Digital Video Disc का संक्षिप्त नाम है।  यह ऑप्टिकल डिस्क तकनीक से CD-ROM  की तरह  होता है।  इसमें न्यूनतम 4.7 GB , एक पूर्ण लम्बाई की फिल्म संगृहीत किया जा सकता है।  डी वी डी सामान्यतः फिल्मो और अन्य मल्टीमीडिया प्रस्तुतियो को डिजिटल रूप में प्रस्तुत करने का एक माध्यम है।  यह एकतरफा या दोतरफा (Single or Double Sided ) होता है और  हर तरफ में एक या दो परत में डेटा संग्रह कर सकता है।  दो तरफा दो परत वाले DVD में 17 GB विडिओ , ऑडियो या अन्य जानकारियों को संग्रह किया जा  सकता है। 


    7. पेन ड्राइव (Pen Drive ) :- यह छोटे की रिंग के आकर का होता है तथा आसानी से यु अस बी (USB-Universal Serial Bus ) संगत प्रणालियों के बीच फाइलों के स्थानांतरण तथा संग्रहण करने के  लिए उपयोग होता है।  यह भिन्न भिन्न क्षमताओं में उपलब्ध है।  इसे पीसी के USB पोर्ट में लगाकर उपयोग किया जाता है।  इसे फ्लैश ड्राइव भी कहते है। यह ई-ई प्रॉम मेमोरी का एक उदाहरण है।  

    8. फ़्लैश मेमोरी (Flash Memory ) :- इसे फ्लैश रैम भी कहा जाता है।  इसके मिटाया तथा फिर से प्रोग्राम किया जा सकता है।  इसका उपयोग सेलुलर फोन , डिजिटल कैमरा , डिजिटल सेट टॉप बॉक्स इत्यादि है।  


                                                    



                                               पर्सनल कंप्यूटर (Personal Computer )

        पीसी व्यक्तिगत उपयोग के लिए छोटा , अपेक्षाकृत कम खर्चीला डिजाइन किया गया कंप्यूटर है।  यह माइक्रोप्रोसेसर प्रौद्योगिकी पर आधारित है।  कंप्यूटर निर्माता को एक चिप पर एक पूरा CPU डालने में सक्षम बनाता है। व्यापार में इसका उपयोग शब्द संसाधन लेखांकन (Accounting ) , डेस्कटॉप प्रकाशन , स्प्रेडशीट तथा डेटाबेस प्रबंधन आदि के लिए होता है।  घर में पर्सनल कंप्यूटर का उपयोग मनोरंजन के लिए ई-मेल देखने तथा छोटे-छोटे दस्तावेज तैयार करने के लिए होता है। 


                                    पर्सनल कंप्यूटर का विकास  (Development Of Personal Computer ) 

    पीसी ( पर्सनल कम्प्यूटर ) सबसे पहले 1970 के दशक में दिखाई दिया।  1970 में माइक्रो प्रोसेसर के विकास ने पीसी (PC ) का विकास किया। सर्प्रथम सबसे लोकपिय पीसी एप्पल II 1977 में एप्पल कंप्यूटर के द्वारा लाया गया।  1981 में IBM पीसी उस समय का लोकपिय पीसी था। 


एक पीसी आमतौर पर कई भागों से मिलकर बनता है --

    1. सिस्टम यूनिट ( System Unit ) : - पीसी द्वारा किये जाने वाले सारे कार्य यही से नियंत्रित होते है। इसके पीछे के भाग से की-बोर्ड , मॉनिटर , माउस तथा प्रिंटर आदि तारो के सहारे जुड़े रहते है।  हार्डडिस्क , सीडी ड्राइव तथा फ्लॉपी ड्राइव इत्यादि इसके अंदर जुड़े रहते है जिन्हे इसे सॉफ्टवेयर के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह पीसी मुख्य भाग है।  संरचना के आधार पर सिस्टम यूनिट दो प्रकार का होता है --

    (a ) डेस्कटॉप टाइप (Desktop Type ):-सिस्टम यूनिट एक वर्गाकार बॉक्स के तरह होता है तथा मॉनिटर इसके ऊपर रखा जाता है। 

    (b ) टावर टाइप (Tower Type ):- इसमें सिस्टम यूनिट एक टॉवरनुमा  होता है जो मॉनिटर के बगल रखा जाता है।  इसमें अतिरिक्त भण्डारण उपकरणों को स्थापित करना आसान होता है।  


                सिस्टम यूनिट के मुख्य भाग (Main Parts of System unit )

    ( i ) सी पी यू (CPU) :- इसे प्रोसेसर या मइक्रोप्रोसेसर भी कहते है।  यह पीसी से जुड़े विभिन्न उपकरणों को नियंत्रित करता है।  यह कंप्यूटर द्वारा प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करता है। 

    इसके तीन भाग होते है -

    मुख्य मेमोरी :- वर्तमान उपयोग हो रहे डेटा या निर्देशों को संगृहीत करता है। 

    अर्थमेटिक लोगिक यूनिट :- अंकगणितीय तथा तार्किक गणनाओ में इसका उपयोग होता है। यहाँ सभी प्रकार की गणना की जा सकती है। 

    कंट्रोल यूनिट :-यह कंप्यूटर द्वारा हो रहे सारे कार्यो को नियंत्रित करता है। 

(ii) मदर बोर्ड (Mother Board ) :- यह प्लास्टिक का बना एक सर्किट बोर्ड है , जिसमे धातु द्वारा निर्मित महीन धागे के समान सरचना को बस कहते है , जिसके द्वारा विभिन्न संकेतो या सूचनाओं का आदान-प्रदान विद्युत् प्रवाह के रूप में होता है , यह कंप्यूटर की बुनियादी है।  कंप्यूटर में प्रोसेसर , विभिन्न प्रकार के कार्ड जैसे डिस्प्ले कार्ड , साउंड कार्ड आदि मदर बोर्ड पर ही स्थापित किया जाते है। यह कंप्यूटर का मुख्य पटल होता है। 

(iii) रैम (RAM) :-मदर बोर्ड पर रैम लगाने का स्थान (Slot) बना रहता है , जिसमे हम अपनी आवश्यकता रैम लगा सकते है।  यह एक कार्यकारी मेमोरी है यानि यह तभी काम सूचनाये नष्ट हो जाती है।  यहाँ सूचनाओं को अस्थायी तौर पर रखा जाता है। 

(iv) रॉम (ROM) :-रॉम अर्थात रीड ओनली मेमोरी जैसा कि नाम  स्पष्ट है कि इस मेमोरी में सग्रहित सूचनाओं को केवल पढ़ा जा सकता है , उसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।  कंप्यूटर बंद रहने पर भी रॉम में सूचनाये संग्रहित रहती है , नष्ट नहीं होती। 

    (v) मैथ कोप्रोसेसर ( Math Coprocessor ) : - यह कंप्यूटर का दूसरा सहायक प्रोसेसर है।  इसके उपयोग वैज्ञानिक गणनाओ और बीजतीय कार्यो के चल बिंदु गणनाओ में होता है।  

    (vi) विडिओ कार्ड (Video Card ) :- इसे ग़ाफ़िक्स एक्सेलेटर कार्ड , डिस्प्ले एडप्टर या ग़ाफ़िक्स कार्ड भी कहते है।  यह हार्डवेयर का भाग  है , जिसका कार्य स्क्रीन पर चित्र या दृश्य प्रदर्शित करना है। 

    (vii) साउंड कार्ड (Sound Card ) :- अधिकतर पीसी मल्टीमीडिया के लिए बने होते है।  साउंड कार्ड मदर बोर्ड पर एक स्लॉट में लगा होता है या बोर्ड में ही बना होता है।  साउंड कार्ड की सहायता से संगीत , भाषण या कोई भी ध्वनि को सुना जा सकता है। 

    (viii) विद्युत आपूर्ति (Power Supply ) :- पीसी के पीछे जहा पावर कार्ड जोड़ा जाता है वह विद्युत आपूर्ति है।  यह AC वोल्टेज को कंप्यूटर के विभिन्न घटको  उपयुक्त DC वोल्टेज में परिवर्तित करता है।  कंप्यूटर घटको को +-5 वोल्ट की आवश्यकता होती है। 

    (ix) स्पीकर (Speaker) :-  सिस्टम यूनिट के अंदर कुछ ध्वनि संकेत के लिए स्पीकर लगा होता है।  जैसे कप्यूटर ऑन करने पर स्क्रीन ऑन होने पहले बीप ध्वनि स्पीकर द्वारा उतपन्न होता है। 

       (x) टाइमर (Timer) :- यह मदर बोर्ड पर लगा आतंरिक घडी है जो बैटरी से चलती है तथा कंप्यूटर के ऑपरेशनो को सैक्रोनाइज़ करने  के लिए इलेक्ट्रिकल पल्स पैदा कराती है तथा इसके स्पीड की गणना गीगा हर्ट्ज़ में की जाती है। 

    (xi) एक्सपेंशन (Expansion) :-   कंप्यूटर के मदर बोर्ड में निर्धारित वह स्थान है , जहां भविष्य में किसी अन्य उपकरण को जोड़ने के लिए स्लॉट बना होता है। 

    सिस्टम यूनिट के सामने के भाग पावर स्विच , रिसेट बटन , फ्लॉपी ड्राइव तथा सीडी ड्राइव होता है।  पावर स्विच सिस्टम यूनिट में विद्युत आपूर्ति को ऑन या ऑफ करने  के लिए प्रयोग होता है।  रिसेट बटन सिस्टम में विद्युत आपूर्ति को बंद किये बिना ऑन करने के लिए होता है।  यह सिस्टम  हैंग करने के स्थिति में प्रयोग होता है।  फ्लॉपी ड्राइव तथा सीडी ड्राइव क्रमशः फ्लॉपी तथा सीडी रीड और राइट करने के लिए उपयुक्त होता है। 

    सिस्टम यूनिट  भाग में विभिन्न बाह्य यंत्रो (Accessories) को जोड़ने के लिए पोर्ट और जैक बने  होते है।     

       (a) पावर सॉकेट (Power Socket)

       (b) की-बोर्ड (Keyboard)

       (c) मॉनिटर (Moniter)

       (d) सीरियल पोर्ट (Serial Port)

       (e) पैरेलल (Parallel)

       (f) ऑडियो जैक (Audio Jack)

       (g) नेटवर्क पोर्ट (Network Port)

       (h) यू एस बी (Universal Serial Bus Port )

       (i) SCSI पोर्ट (Small Computer System Interface Port )

    2. हार्ड डिस्क (Hard Disk ) :- यह विशाल क्षमता युक्त स्थाई भंडारण उपकरण है।  सॉफ्टवेयर , प्रोग्राम एवं डेटा इसमें संग्रह कर रखते है तथा आवश्यकतनुसार कंप्यूटर उसका उपयोग करता है।  यह कंप्यूटर में लगा स्थायी डेटा स्टोर  उपकरण है। 

    3. सीडी ड्राइव (CD-Drive) :- सीडी से डेटा पढ़ने या लिखकर स्टोर के  इसकी आवश्यकता होती है। 

    4. फ्लॉपी ड्राइव (Floppy Drive):- फ्लॉपी को पढ़ने या लिखने के लिए  आवश्यकता होती है। 

    5. मॉनिटर (Moniter):- यह आउटपुट उपकरण है जिसके द्वारा मानव तथा कंप्यूटर के बीच संवाद होता है।  यह सी पी यू से जुड़ा  है। 

    6. माउस (Mouse) :-    यह इनपुट डिवाइस है।  यह दो बटन , तीन बटन या ऑप्टिकल होते है।  यह सी पी यू से कार्ड के साथ जुड़ा रहता है। 

    7. की-बोर्ड :- पीसी में डेटा को इनपुट करने के लिए लगा उपकरण जिसके द्वारा हम अक्षरों एवं अंको को इनपुट रूप में कंप्यूटर में डालते है।  साधारण की बोर्ड में 104 की होते है पर IBM पीसी के की-बोर्ड में 83 की होते है।  

    8. स्पीकर (Speaker) :- यह एक कंप्यूटर उपकरण है।  यह ध्वनि के रूप में आउटपुट देता है।  इसका उपयोग प्रायः मनोरंजन के लिए होता है।  

    9. प्रिंटर (Printer):- यह एक आउटपुट उपकरण है जो कंप्यूटर द्वारा प्रदत्त आउटपुट को कागज पर प्रिंट  करता है या हार्ड कॉपी प्रदान करती है। 

    10. स्कैनर (Scanner) :- वह उपकरण जी इमेज को स्कैन क्र बाइनरी कोड़ में बदलकर कंप्यूटर  इनपुट करता है। 

    11.  सीडी रॉम ड्राइव (CD-ROM Drive ):-सीडी से डेटा पढ़ने में प्रयुक्त किया जाने वाला यन्त्र है। 

    12 सीडी राइट (CD-Righter):- सीडी से डेटा पढ़ने में प्रयुक्त पढ़ने  एवं लिखने दोनों में प्रयुक्त किया जाने वाला यंत्र है। 

    13. मॉडेम (MODEM) :-यह Modulator-Demodulator  का संक्षिप्त नाम है।  यह टेलीफोन लाइन के द्वारा कंप्यूटर इंटरनेट से जोड़ता है तथा डेटा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजता है। 

    14. यू पी एस (UPS-Uninterruptible Power Supply):-यह बैटरी से संचालित उपकरण है जिसके द्वारा कंप्यूटर में अनवरत विद्युत आपूर्ति बानी रहती है।  कंप्यूटर में अचानक बंद हो जाने से वर्तमान में हो रहे कार्य नष्ट हो सकते है।  परन्तु यू पी एस के उपयोग से ऐसा होने से बचाया जाता है  

    














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